Urmila Matondkar Quits Congress: इन बॉलीवुड सितारों को रास नहीं आयी राजनीति, कुछ दिन बिताकर फ़िल्मों में लौटे

नई दिल्ली : बॉलीवुड एक्ट्रेस उर्मिता मातोंडकर ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है। लोक सभा चुनाव 2019 से पहले उर्मिला ने कांग्रेस का दामन थामा था और मुंबई नॉर्थ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, मगर वो चुनाव नहीं जीत सकीं। हालांकि उर्मिला का अगला क़दम क्या होगा, इसका खुलासा अभी नहीं किया है। वो कोई दूसरी पार्टी ज्वाइन करेंगी या राजनीति ही छोड़ देंगी, इसका पता कुछ वक़्त बाद चलेगा।
वैसे उर्मिला से पहले ऐसे कई बॉलीवुड एक्टर्स हैं, जिन्होंने राजनीति का दमन थामा, मगर ज़्यादा वक़्त इसमें बिता नहीं सके। राजेश खन्ना राजेश खन्ना जैसा स्टारडम हिंदी सिनेमा के किसी सुपरस्टार ने नहीं देखा, मगर राजनीति के मंच पर राजेश खन्ना फ्लॉप एक्टर साबित हुए। कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर राजेश खन्ना 1992 से 1996 कर नई दिल्ली के सांसद रहे, मगर सियासत की पारी लंबी नहीं चली।
हिंदी सिनेमा के पर्दे पर नायक के नए तेवर पेश करने वाले अमिताभ बच्चन ने सियासत में क़िस्मत आज़मायी और 1984 में इलाहाबाद से रिकॉर्ड मतों से लोकसभा चुनाव जीता भी, मगर तीन साल बाद ही अमिताभ बच्चन को अहसास हो गया कि राजनीति के वो कभी सुपरस्टार नहीं बन सकते। बच्चन ने इस्तीफ़ा देकर सियासत छोड़ दी।
धर्मेंद्र का फ़िल्मी सफ़र जितना शानदार रहा, उनका पॉलिटिकल करियर उतना ही आलोचनाओं का शिकार बना। धर्मेंद्र ने 2004 में बीकानेर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता, मगर संसद में ग़ैरहाज़िरी के लिए उन्हें क्रिटिसाइज़ किया जाता रहा। धर्मेंद्र ने इसके बाद राजनीति छोड़ दी।
गोविंदा ने हिंदी सिनेमा में अपनी कॉमिक टाइमिंग से फ़ैंस का ख़ूब मनोरंजन किया है, मगर जब इस स्टारडम को राजनीति में करियर बनाने के लिए इस्तेमाल किया तो ट्रैजडी हो गयी। 2004 में गोविंदा ने कांग्रेस के टिकट पर मुंबई की विरार कांस्टिचुएंसी से लोकसभा चुनाव लड़ा, जीते भी, मगर उनका कार्यकाल काफ़ी विवादों भरा रहा। 2008 में गोविंदा ने अपने पॉलिटिकल करियर के क्लाइमेक्स का एलान कर दिया।
संजय दत्त के पिता सुनीत दत्त कामयाब राजनेता थे। उनकी बहन प्रिया दत्त भी राजनीति में सक्सेसफुल रही हैं। मगर, संजय पॉलिटिक्स में फ्लॉप रहे। उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के टिकट पर नामांकन करवाया मगर अदालत ने उनके कंविक्शन को सस्पेंड करने के इंकार कर दिया, जिसके चलते चुनाव नहीं लड़ सके। उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया, मगर 2010 में संजय ने पद और पार्टी छोड़ दी।