बांधवगढ़ में प्रशिक्षु आईएफएस कर रहे थे शावकों का इलाज
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन बाघ शावकों की मौत के मामले में नया खुलासा हुआ है। यहां पार्क प्रबंधन ने वन्यप्राणी चिकित्सक को दरकिनार कर तीन शावकों का इलाज प्रशिक्षु आईएफएस एए अंसारी से कराया।
हैरत की बात तो यह है कि किसी लैब में टेस्ट कराए बगैर पार्क प्रबंधन ने घोषित कर दिया कि शावक केनाइन पार्वो वायरस-दो की चपेट में आ गए और इसी से मौत हुई। जबकि शावकों की हालत बिगड़ने के बाद भी पार्क प्रबंधन शावकों पर इलाज के नाम पर प्रयोग करता रहा। प्रशिक्षु अफसर अंसारी को सरकार ने 21 अप्रैल को बांधवगढ़ से हटा दिया।
वन विभाग ने शावकों के रेस्क्यू से लेकर उनके लालन-पालन पर खासी वाहवाही लूटी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शावकों की इस तरह की देखभाल से खुश होकर अफसरों को शाबासी दी, पर असल स्थिति अब सामने आई है।
जानकार बताते हैं कि उचित देखरेख के अभाव में शावक इस स्थिति में पहुंचे। इलाज के लिए अनुभवी डॉक्टरों की जरूरत थी और विभाग डिग्रीधारी प्रशिक्षु अफसर से लक्षण के आधार पर इलाज करा रहा था।
ज्ञात हो कि ये शावक संजय धुबरी टाइगर रिजर्व की बाघिन टी-वन के थे। जिसका 20 जनवरी को शहडोल के सरसवाही में करंट लगाकर शिकार हुआ। तब तीन दिन रेस्क्यू अभियान चलाकर एक माह के इन शावकों को बांधवगढ़ लाए थे। यहां उन्हें अलग बाड़े में रखा गया था।
फील्ड डायरेक्टर एक तरफ कहते हैं कि 13 अप्रैल को शावकों में वायरस के लक्षण मिले और दूसरी तरफ यह भी कहते हैं कि जब उन्हें लाया गया था, तभी से उन्हें ये दिक्कत थी। इसीलिए अलग बाड़े में रखा था। इनमें से दो शावकों की 23 अप्रैल और एक की 26 अप्रैल को मौत हुई है।
पार्क के फील्ड डायरेक्टर मृदुल पाठक स्वीकार करते हैं कि तीनों शावकों का इलाज प्रशिक्षु आईएफएस अंसारी ने किया है और पार्वो वायरस की पुष्टि के लिए कोई टेस्ट नहीं कराया गया। वे बताते हैं कि अंसारी एमवीएससी (पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नाकोत्तर) हैं। ये योग्यता प्रदेश के किसी भी नेशनल पार्क के डॉक्टर के पास नहीं है।
अंसारी सहित चार डॉक्टरों की टीम ने संयुक्त निर्णय लेकर इलाज किया है। शावकों के वायरस की चपेट में आने की पुष्टि के सवाल पर पाठक कहते हैं कि लक्षणों को देखकर तय हुआ और आईबीआरआई, चेन्न्ई व विदेशी विशेषज्ञों से भी इलाज के लिए परामर्श लिया है।
एमब्रियोलॉजिस्ट डॉ. आनंद कुशवाह कहते हैं कि आईबीआरआई में पशुधन के इलाज की पढ़ाई होती है। वन्यप्राणियों के इलाज के लिए अलग से ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। उसके बगैर वन्यप्राणी के इलाज में विशेषज्ञ नहीं कहे जा सकते हैं।
वन्यप्राणी एक्टिविस्ट अजय दुबे ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से शिकायत कर जांच की मांग की है। दो दिन पहले पार्क का दौरा कर चुकी एनटीसीए की टीम अब मुख्यालय को रिपोर्ट सौंपेगी। दुबे ने अपनी शिकायत में सवाल उठाया है कि पार्क प्रबंधन ने वायरस से शावकों की मौत तो बता दी, पर किसी लैब की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की।
फील्ड डायरेक्टर पाठक बताते हैं कि वायरस पार्क में न फैले। इसलिए जहां शावकों को रखा गया था, वहां बाड़े में पोटेशियम का छिड़काव किया है। वहीं बाड़े के आसपास आग लगाकर घास जला दी गई है।
शावक फील्ड डायरेक्टर की देखरेख में थे। उन्होंने हर उस व्यक्ति की मदद ली, जो उनकी मदद कर सकता था। (क्या वन मुख्यालय की सहमति से प्रशिक्षु आईएफएस इलाज कर रहे थे, इसका जवाब नहीं दिया।) – जितेंद्र अग्रवाल, चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन