आखिर इन्हे इतना पत्रकार विरोधी क्यों बना दिया गया?
हम पत्रकार अक्सर दूसरों पर सवाल उठाते हैं, लेकिन कभी खुद पर नहीं, हम दूसरों की जिम्मेदारी तय करते हैं, लेकिन अपनी नहीं. हमें ‘लोकतंत्र का चौथा खंभा’ कहा जाता है. लेकिन क्या हम, हमारी संंस्थाएं, हमारी सोच और हमारी कार्य प्रणाली क्या है इसके बारे में सोचते हैं? यह सवाल सिर्फ मेरे लिए नहीं है हम सब के लिए है? पालन करना, न करना हर किसी का निजी मामला है लेकिन मेरा मानना है जो पर्सनल है वह प्रोफेशनल भी होना चाहिए। एक ऐसा वक्त आता है जब आपको अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों और अपनी निजी-सामाजिक पक्षधरता मेसे किसी एक पढ़ले में खड़ा होना होता है। मैंने दूसरे को चुना है. आगे जो मैं कहने जा रही हूं वह किसी भावावेश गुस्से या खीझ का नतीजा नहीं है बल्कि एक चिंतित विषय है. मैं पत्रकार होने के साथ-साथ एक बुद्धिजीवी भी हूं ओह! सॉरी मैं तो भूल ही गई थी कि पत्रकार बुद्धिजीवी नहीं माने जा सकते। शासन ने तो बड़े नेता व्यापारियों और विशेष लोगो को ही बुद्धिजीवी और पत्रकार माना हुआ है. पत्रकारों के साथ दोगला व्यवहार शासन और शासन के कुछ जिम्मेदार अधिकारी गैर-जिम्मेदार प्रतिनिधि नई मीडिया को मीडिया मानने के लिए तैयार ही नहीं। वही नवीन मीडिया में कार्य करने वाले को पत्रकार का तगमा कैसे दें? इस विषय पर स्पष्ट संदेह बनाए हुए हैं.
कुछ लोगों का मानना है कि बुद्धिजीवियों और वेब मीडिया को तो पत्रकार की कैटेगरी में नहीं रखा जा सकता। मैं आपको एक अनुभव साझा करने जा रही हूँ, जिसमें राजनाथ सिंह जी ने बुद्धिजीवीयो से सप्रेम भेंट करने का निमंत्रण मिला में भी गई लेकिन मेरा उनसे पहला सवाल यही था की बुद्धिजीवियों में पत्रकारों को नहीं बुलाया गया है? लेखक, संवाददाता, संपादक समीक्षकों को शामिल नहीं किया गया आखिर क्यों? उस दिन मेरी पत्रकरिता प्रेमी आत्मा बुद्धिजीविता पर प्रभावी थी लेकिन भोपाल में आए हुए और पत्रकारिता करते हुए मुझे पांच वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत हो गया. मुझे यह अंदेशा भी नहीं था कि पत्रकारिता के लिए बुद्धि और लेखन-कला के अलावा चयनित प्रतिनिधियों से परिचय और जनसंपर्क कार्यालय मैं भी परिचय बढ़ाना होता है. पत्रकारिता का प्रमाण-पत्र पाने के लिए एक पत्रकार को अपनी छवि पत्रकारिता के रूप से अधिक परिचय में निभानी होती है. मैंने अधिमान्यता के लिए ऑनलाइन अप्लाई किया बताया जा रहा है कि कुछ अनुभवी पत्रकारों की टीम ने नई लिस्ट जारी की है जिसमें मेरा नाम नदारद है मुझे तो उम्मीद थी कि अधिमान्यता के टेस्ट में पास हो जाउंगी लेकिन, शाम तक साथ मेरा सारा भ्रम टूट गया. कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने इस बावत संपर्क कर बताया कि आप बुद्धिजीवी है और पत्रकार की जमात मैं आपको पहले बता देना चाहिए था की आपने अप्लाई किया है.
मजेदार बात यह है की पत्रकार टीम में कुछ दशमी पास अनुभवी पत्रकारों को भी बुलाया गया था जो कि पारंपरिक ट्रेडिशनल-पेपर पत्रों के अनुभवी रहे है और नवीन मीडिया को मनाने से नकारते हैं. जिस तरह से उन्होंने अपना अनुभव प्राप्त किया उससे लगता है बुद्धिजीवी और नए पत्रकारों को अपनी जमात में शामिल करने के मूड में नजर नहीं आते. अनुभवी पत्रकार साथियों के इस दोयम कदम से नवीन मीडिया के पत्रकारों में अच्छी खासी नाराजगी है. न्यू मीडिया के पत्रकार भी देखना चाहते है की तथा कथित विशेष पत्रकार शासन के सर्टिफिकेशन देने पर कब तक सेंसर लगा सकते हैं.
आखिर इन्हे इतना पत्रकार विरोधी क्यों बना दिया गया? देश की प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में पढ़ाई करने और प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद भी मध्यप्रदेश में अधिमान्यता के लिए पत्रकारिता से ज्यादा परिचय का होना जरूरत क्यों? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? मुझे ऐसा लगता है जैसे एक पत्रकार ही दूसरे पत्रकार की पत्रकारिता पर सुपारी किलर बन बैठा है. मेरा दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस तरह के निर्णय के प्रति अपनी असहमति चिन्हित करूँ।
दया आने लगी है मुझे उनके निर्णय पर, पत्रकारिता पर और उनकी निजी विवशता पर. में भी एक पत्रकार हूँ एक साल नहीं दो साल मैं अपने प्राप्त अधिकारों को लेके रहूंगी। ये अधिकार व्यक्तिगत नहीं है क्योंकि मात्र मेरे साथ ही ऐसा नहीं हुआ है. बात पेशेवर जिम्मेदारी की है. साथी पत्रकार के साथ दायित्वबोध की है और आखिर में बुद्धिजीवी जमात की भी है. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन तीनों पैमानों पर आप फेल हुए है?
मनीषा सिंह जादौन
संपादक कम विचारक
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