जो कभी कार में नहीं बैठे उनके नाम नौ लग्जरी कार फायनेंस, ऐसे सामने आई सच्चाई

चोरी और फायनेंस की गाड़ियों को फर्जी दस्तावेजों से बेचने वाले जिस अंतरराज्यीय गिरोह को इंदौर पुलिस ने पकड़ा है वैसे कई गिरोह हमारे आसपास ही मौजूद हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां किसानों से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के नाम पर उनके ही परिचित इन दस्तावेजों का उपयोग कर गाड़ियां फायनेंस करवा लेते हैं। अब फायनेंस कंपनियां इन गांवों में वसूली के लिए पहुंच रही हैं तो पता चल रहा है इन किसानों पर लाखों का कर्ज चढ़ा हुआ है, जो उन्होंने कभी लिया ही नहीं।

देवास जिले के बागली कस्बे से सटे लखवाड़ा गांव के छोटे से किसान मांगीलाल का परिवार इन दिनों सदमे में है। पिछले दिनों उनसे कर्ज वसूली के लिए पहुंची एक फायनेंस कंपनी से पता चला कि उनकी और बेटों की जमीनों पर एक-दो नहीं बल्कि नौ लग्जरी कारें फायनेंस हो चुकी हैं।

जबकि परिवार के कई सदस्यों ने आज तक ना तो कभी इंदौर देखा और न ही कभी लक्जरी कार में बैठे। भास्कर इन्वेस्टीगेशन में सामने आया कि इंदौर-देवास-सीहोर जिले में ऐसे शातिर गिरोहबाज सक्रिय हैं जो ग्रामीणों से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के नाम पर जमीनों के कागजात लेता है और फिर अलग-अलग फायनेंस कंपनियों से मिलीभगत कर लग्जरी कारें फायनेंस कर उन्हें बाले-बाले बेच देता है। 17 गाड़ियां तो एक ही फायनेंस कंपनी की हैं। पीड़ितों ने बताया कि गोविंदपुरी का लाखन लिंबोदिया उनसे कागजात ले गया था। नई-नई गाड़ियों से रिश्तेदारों के यहां रौब जताने वाला पंचायत सचिव का यह बेटा अपने-आप को क्रिकेट खिलाड़ी बताता है। लोगों को उसने बताया कि यह गाड़ियां उसे क्रिकेट में नाम कमाने पर तोहफे के रूप में मिली हैं। बैंक लोन दिलाने के नाम पर यह किसानों की जमीनों के कागजात और कोरे चेक हासिल करता है फिर फायनेंस कंपनी के अधिकारियों से सांठगांठ कर खुद ही कागजों पर फर्जी हस्ताक्षर के जरिए गाड़ी फायनेंस करवा लेता है। कुछ किस्तें जमा करनें के बाद में यह गाड़ी औने-पौने दाम पर ठिकाने लगा दी जाती है। पहला शिकार इसने अपने रिश्तेदारों को ही बनाया। जैसे लखवाड़ा गांव के बनेसिंह, पर्वत सिंह, अरुण के नाम पर मारुति सियाज, ह्यूंडई वर्ना, महिंद्रा स्कॉर्पियो, मारुति स्विफ्ट जैसी गाड़ियां फायनेंस करवाई तो सोनकच्छ से सटे गढ़ खजूरी गांव के मांगीलाल मालवीय के नाम पर भी इसी तर्ज पर दो-दो गाड़ियां फायनेंस करवा रखी हैं। फिलहाल 20 गाड़ियों के मामले सामने आ चुके हैं। पुलिस जांच में एक बड़ा संगठित गिरोह सामने आ सकता है।

मैं न तो कभी इंदौर गया न कभी कार में बैठा
कागजों पर ‘वर्ना’ और ‘स्विफ्ट’ कारों के मालिक अरुण गोंदिया बताते हैं- मैं गांव में ही रहता हूं। मैंने कभी इंदौर शहर की सूरत नहीं देखी। 8-10 बार बस में बैठा हूं। पर आज तक ट्रेन और कार में बैठना नसीब नहीं हुआ। अरुण ऐसे अकेले किसान नहीं हैं जिन्हें छला गया हो।
जब हम गांव पहुंचे तो खुद भी दंग रह गए कि जिसके नाम पर इतनी गाड़ियां फायनेंस हैं वह तो इन सब से अनजान है।
सदाकत खान, रिकवरी ऑफिसर, एल एंड टी फायनेंस
सिबिल से एनओसी कैसे मिली?
कागजों पर दो कारों के मालिक बनेसिंह कहते हैं कि किसी ने बड़े भाई के नाम पर एयू फायनेंस से स्कॉर्पियो ली थी, जो कंपनी ने जब्त कर ली। सिबिल में डिफाॅल्टर उन्हीं बड़े भाई के नाम पर दो और कारें दूसरी कंपनी से फायनेंस होने का पता चला है।