PAK पर आतंकियों को आर्थिक पनाह देने वाली सूची में शामिल होने का खतरा

पाकिस्तान पर आतंकवादियों को आर्थिक मदद देने वाले देशों की सूची में शामिल होने का खतरा मंडरा रहा है. इस खतरे को भांपते हुए पाकिस्तान नें पेरिस में होने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में अपना पक्ष रखने के लिए अंतरिम वित्त मंत्री शमशाद अख्तर को भेजा है. भारत और अमेरिका भी इस बैठक में बनने वाली रणनीति को लेकर एक दूसरे के संपर्क में हैं.
पाकिस्तान ने कार्रवाई से बचने के लिए लगाया एड़ी चोटी का जोर
पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने वाले देशों की निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में एफएटीएफ की फरवरी माह में हुई बैठक में डाल दिया गया था. तब पाकिस्तान को कुछ महीनों की मोहलत यह कहकर दी गई थी कि 24 जून से 29 जून तक चलने वाली एफएटीएफ की समीक्षा बैठक में पाकिस्तान को इस मामले में एक्शन टेकेन रिपोर्ट देनी होगी.
इस बैठक में फैसला होना है कि आतंकवादियों को आर्थिक मदद मुहैया कराने वाली गतिविधियों के खिलाफ पाकिस्तान नें क्या ठोस कदम उठाए हैं और इसे लेकर पाकिस्तान के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई हो या नहीं. खुद को इस संकट से बचाने के लिए पाकिस्तान ने काले धन को वैध बनाने की प्रक्रिया पर लगाम लगाने के मकसद से नए नियम की पेशकश की है जिससे आतंकियों को आर्थिक मदद पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोका जा सके.
किन कारणों से पाक पर हो सकती है कार्रवाई
इस्लामाबाद के खिलाफ ये कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठनों पर ठोस कार्रवाई नहीं करने को लेकर लिया जा रहा है. पाकिस्तानी अखबारों की मानें तो इस्लामाबाद ने पिछले महीने बैंकॉक में हुई एफएटीएफ की बैठक में आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई से जुड़ी योजना का ब्लू प्रिंट पेश किया था. लेकिन पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन जैसे संगठनें के खिलाफ की गई कार्रवाई के सिलसिले में कोई ठोस दलील पेश नही कर पाया.
हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ की कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव है. लेकिन पाकिस्तान ने यह कहकर अपना बचाव करने की कोशिश की है कि हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में है. अगर पाकिस्तानी इस निगरानी सूची में बना रहा तो यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा और इससे अमेरिका के साथ इसके संबंध ज्यादा तनावपूर्ण होंगे.
क्या है एफएटीएफ?
एफएटीएफ एक वैश्विक संस्था है जो आतंकवादी गतिविधियों के लिए मुहैया कराई जा रही पूंजी और काले धन को वैध बनाने के खिलाफ कदम उठाती है.
इसकी स्थापना 1989 में की गई थी. इसमें 37 स्थायी सदस्य हैं. इजरायल और सऊदी अरब पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं.