डोकलाम पर आर-पार के बीच क्यों देउबा के नई दिल्ली दौरे पर है चीन की नजर

डोकलाम पर भारत और चीन के बीच जारी तनातनी के इतर नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नई दिल्ली दौरे पर चीन की गहरी नज़र है। चीन की पैनी नज़र रखने की खास वजह ये है कि जून में नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद आधिकारिक तौर पर अपने पहले विदेश दौरे के लिए देउबा ने भारत को ही चुना है। देउबा के इस कदम को भारत और नेपाल के संबंधों को मजबूती देने की दिशा में काफी अहम माना जा रहा है।

तो आइए समझने का प्रयास करते हैं कि जिस तरह से नेपाल में नया संविधान बनने के बाद तराई क्षेत्र में सुलगते मधेशी आंदोलन से नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में खटास आई थी, क्या भारत और नेपाल उसे भूलकर आगे बढ़ गए हैं? साथ ही क्या जिस तरह से चीन लगातार नेपाल के साथ अपने आर्थिक संबंध बढ़ा रहा है, ऐसे में भारत की ओर नेपाल का ताज़ा झुकाव किस ओर संकेत कर रहा है?

उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पांच दिवसीय दौरे पर देउबा
नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा अपने साथ उच्च स्तरीय व्यावसायिक प्रतिनिमंडल लेकर भारत आए हैं। जिससे ये बात साफ है कि पड़ोसी देश भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को मजबूत करना चाहता है। देउबा के नेतृ्त्व में वर्तमान नेपाली कांग्रेस सरकार पिछली सरकार खासकर केपी ओली की तुलना में ज्यादा भारत से संबंध को बेहतर करने की इच्छुक बताई जा रही है।

डोकलाम विवाद पर नेपाल की संतुलित प्रतिक्रिया
करीब पन्द्रह दिन पहले नेपाल के उप-प्रधानमंत्री कृष्ण बहादुर महारा ने डोकलाम विवाद पर नेपाल के स्टैंड को बड़े संतुलित तरीके से रखा था। उन्होंने कहा, सीमा विवाद पर नेपाल न ही इस पक्ष रहेगा और न ही उस पक्ष। नेपाल चाहता है कि भारत और चीन शांतिपूर्ण कूटनीति के जरिए इस विवाद का समाधान करें।

नेपाल के उप-प्रधानमंत्री की डोकलाम पर ये टिप्पणी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेपाल दौरे के कुछ ही दिनों बाद आयी। सुषमा वहां पर 15वें बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्नीकल एंड इकॉनोमिक को-ऑपरेशन) की मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने गईं थीं। काठमांडू दौरे के वक्त सुषमा स्वराज ने पीएम देउबा से मुलाकात की थी और वहां के स्थानीय अख़बारों ने अपनी ख़बर में बताया था कि “दोनों नेताओं ने दोनों देशों की दोस्ती को और मजबूत करने के संकल्प” पर अपनी प्रतिबद्धता जताई।

देउबा पर है लिपुलेख विवाद को मोदी के सामने उठाने का दबाव
भारत की तरफ से नेपाल के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का प्रयास ऐसे समय में किया जा रहा है जब पिछले कुछ वर्षों के दौरान वहां पर चीन का बेतहाशा निवेश हुआ है। ऐसा माना जा रहा है प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में नेपाल के उनके समकक्ष जहां व्यापार को मुख्य विषय बनाकर बात कर सकते हैं, वहीं ऐसी कम ही संभावना है कि डोकलाम का जिक्र न हो।

देउबा पर इस बात का भी दबाव है कि वह भारत के साथ लिपुलेख विवाद को उठाए। लिपुलेख भारत, नेपाल और चीन के बीच त्रिशंकु सीमा है, जहां पर अधिकार को लेकर विवाद चल रहा है। लिपुलेख कालापानी के बेहद नजदीक है जो नेपाल और भारत की सीमा के पास एक विवादित क्षेत्र है। नेपाल की संसद ने साल 2015 में भारत और चीन के बीच लिपुलेख पास के नजदीक सीमा व्यापार बढ़ाने को लेकर हुए समझौते पर अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की थी। नेपाल ने इसे अंतरराष्ट्रीय नियम और महत्ता का उल्लंघन करार दिया था। हाल में ही चीन ने डोकलाम से दोनों देशों की सेना के जवानों को एक साथ हटाने के भारत के सुझाव को खारिज करते हुए कहा था कि अगर बीजिंग कालापानी या कश्मीर में घुस जाए तो नई दिल्ली का क्या रुख रहेगा।

देउबा के दौरे को क्यों महत्वपूर्ण बता रहे हैं जानकार
विदेश मामलों के जानकार विवेक काटजू ने बताया कि जिस माहौल में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत आ रहे हैं वह काफी अहमियत रखता है। दोनों देशों के लिए इस वक्त अच्छा मौका है द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का। काटजू ने बताया कि नेपाल हमेशा से भारत के लिए अच्छा दोस्त रहा है। ऐसे में देउबा का बतौर पीएम पहले विदेश दौरे पर भारत आना ये इस बात को जाहिर करता है कि वे नई दिल्ली के साथ मजबूत संबंध चाह रहे हैं।